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हास्यराजनीतिहास

सहर ढूंढा हमने

शायरी

क्या नज़ारा होगा

सुक़ूं के पल

संवाद - एक सामाजिक बंधन

मातृ दिवस पर विशेष

मिलन

नारी

मरने का शौक है तो इश्क़ कर लो

इश्क़ ही है दवाई

मुसर्रत

परशुराम का अग्रज हूं

मोहब्बत हमारी इतनी निकम्मी है

हसीनाओं के जलवे

सुनहरी याद

खूबसूरत है ये वादियां मगर महफूज़ नहीं

राह गुजरे तो बता देना

प्रेम गवाही