सहर ढूंढा हमने





कतरा - कतरा में इश्क़ ढूंढा हमने
दश्त-ओ-दर में सहर ढूंढा हमने ।

काग़ज़ी बात पर बिजलियां गरजीं
हुकूमती ऐलानों में घर ढूंढा हमने ।

सैलाबों में मेघ कुछ जमकर बरसे
मुफलिसी में सर ढूंढा हमने ।

गैरों के बज़्म में पांव खुलकर थिरके
वादों में उसकी असर ढूंढा हमने ।

ज़िन्दगी जो थी सब की सब लूटा दी
अपने लिए नंगे - तन ज़हर ढूंढा हमने ।

© अंबिकेश कुमार चंचल



Comments

  1. शानदार लेखन चंचल जी। आपके एक - एक शेर ने दिल छू लिया।

    ReplyDelete
  2. बेहतरीन चौबे साहब ! आपके शेर और साहित्य का वास्तव में मैं बहुत बड़ा प्रशंसक हूँ। ऐसे ही लिखते रहिए! आशीर्वाद है हमारा।

    ReplyDelete
  3. क्या बात है! बहुत बढ़िया :)

    ReplyDelete
  4. Beautiful

    ReplyDelete
  5. Nice Manish Bhai

    ReplyDelete

Post a Comment

We recommend you to please show your view on the above writing.