सुक़ूं के पल






मेरी रूह को कुछ सुकूं के पल बख्श दे मेरे मौला
या हिज्र को मेरी बुलंदी दे मैं आप ही मर जाऊं ।


© अंबिकेश कुमार चंचल

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