ये तालीम - वालीम समझाइश सब बेकार है
इश्क़ ही है दवाई जब दिल बीमार है ।
ये कढ़ाई - वढ़ाई गाना गुनी कुछ नहीं है
औरत तो है मगर, बीवी धत् कुछ नहीं है ।
दिन में बीमारियां भरती हैं कुछ इस तरह आगोश में
रातों को, बुढ़ापा धत् कुछ नहीं है ।
तुम मेहरबान हुए, देखो सूरज में चमक लौट आयी है
पूरा शहर रो रहा इस मातम में, आज चंदा की विदाई है।
ये शराफत - वराफत कसमें सब जाने दो
आज रात फिर महबूब की ही गोद में बिताने दो।
© अम्बिकेश कुमार चंचल
Nice Lines :)
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