राह गुजरे तो बता देना


अंबिकेश कुमार चंचल



जब वो राह गुजरे तो बता देना
जगे जब दिल में अरमां जता देना।

वो तख्त औ' ताज वो बुलंदियां
बात दिल की हो हटा देना ।

हजार ख्वाहिशों के साथ कर सकते हो बसर
जो ख्वाहिश इश्क़ की हो, दिल को सता देना।

वो देखते हैं आंख भरकर आजकल मुझे
दिन में सही, सुखनवर हैं रातों को सुला देना।

क्या कविता निकलती है तालियों की गड़गड़ाहट तले
वाजिब नहीं किसी की दर्द पर सीटी बजा देना।

आ जाओ रात आज ठहरकर कुछ बातें कर लेते हैं
सहर होते ही मगर दिल को समझा देना ।


© अंबिकेश कुमार चंचल 

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