🎭 हास्यराजनीतिहास 🎭
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आहों ने खामोशी तानी
रूदन था चिंतामग्न
आये थे कुछ साहसी लुटेरे
करने हमको दिक् भ्रम ।
मेरे स्वतंत्र पाँवों में
वो बेड़ियाँ गिनाते न थकते
जब सूरज की सुर्खी से
शब-ए-गम में जाना मंजूर न था
वो मेरी जाति बताते न थकते ।
आहों ने खामोशी तानी .....
शब्द नए हैं बोल वहीं हैं
जो कभी से बोल रहा हूँ मैं
सोच लेना इतना अगर
जब लगे डोल रहा हूँ मैं ।
तेरह में हमने भृकुटी तानी
नींद खुली जब बरसों बाद
नुक्कड़ पर करते थे हाँ वाणी प्रखर
पर वो ओज उसी का है ।
आहों ने खामोशी तानी .....
पैरों में बेड़ियाँ गिनाकर
कर चुके थे चप्पलें गायब
हमें ये अहसास उसी का है
इस जलजले से उस जलजले तक
सब दोष उसी का है, कुसूर उसी का है ।
आहों ने खामोशी तानी .....
जिसने तबाही का मञ्जर लाया
तुम्हारी सफाई का प्रण उठाया
उसको सिर पर बिठा के क्या पाया
जिसको हो जाना था गुमनाम
उसका नाम बता के क्या पाया ।
आहों ने खामोशी तानी .....
हँसी - ठिठोल करते बालक मेरे
जब करते तुम माईक प्रयोग
सच बताओ हास्यकारों की
सरकार बनाकर क्या पाया
इस देश की राजनीति को
ठिठोल का मंच बनाकर क्या पाया ?
- अम्बिकेश कुमार चंचल
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